महाभारत का युद्ध खतम होने के कुछ सालों के बाद पांडव वन मे चले गए। उसके बाद अभिमन्यु के बेटे परीक्षित को सम्राट् बनाया गया। परीक्षित अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र थे। जब ये अपनी माता के गर्भ में थे उस समय महाभारत का युद्ध चल रहा था। कौरवों के युद्ध हार जाने के बाद द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने इन्हीं को मारने के लिए उत्तरा के गर्भ पर ब्रह्मास्त्र छोड़ा था। हालांकि भगवान श्री कृष्ण के हस्तक्षेप के कारण परीक्षित की जान बच गई।
जब परीक्षित राजा बने उस समय कलयुग का प्रथम चरण शुरू हुआ था यानी कि कलयुग का जन्म हुआ था। राजा परीक्षित को कलयुग के विषय में सब कुछ ज्ञात था। उन्हें पता था कि आने वाले समय में कलयुग का क्या प्रभाव पड़ने वाला है। जब बाल्यावस्था में कलयुग राजा परीक्षित के दरबार में पेश हुआ और अपने लिए किसी स्थान की मांग करने लगा तब राजा परीक्षित ने उसको उसके स्थान के बारे में बताया कि वह कहां कहां रह सकता है। राजा परीक्षित ने उसे बताया कि वह मदिरालय में निवास करेगा, वेश्यालय में भी कलयुग का निवास होगा, जिस घर में कोई देवी देवता की पूजा नहीं करता वहां भी कलयुग का निवास होगा, इस प्रकार राजा परीक्षित ने कलयुग को उन सभी स्थानों मे रहने की आज्ञा दी जिसे आज के दौर में लोग हीन भावना से देखते हैं।
राजा परीक्षित के इन वचनों को सुन कलयुग बहुत प्रसन्न हुआ और राजा परीक्षित से बोला हे राजन आपने सभी गलत स्थानों में रहने की आज्ञा दी है कृपा कर आप मुझे एक ऐसा स्थान दें जिसे लोग गलत ना समझें। इतना सुनने के बाद राजा परीक्षित बोले थे कलयुग तुम आज से सोने ( स्वर्ण ) में भी निवास करोगे। राजा परीक्षित से इतना सुनते ही कलयुग उनके सोने से बने मुकुट पर विराजमान हो गया। जिसके मस्तक पर ही जब कलयुग विराजमान हो तो बड़े से बड़ा ज्ञानी का ज्ञान भी खत्म हो जाता है और वह गलत करने पर विवश हो जाता है।
एक बार की बात है राजा परीक्षित शिकार खेलने वन में गए थे। रास्ते में उन्हें बहुत तेज प्यास लग गई और वह पानी की खोज करने लगे तभी उन्हें दूर एक ऋषि की कुटिया नजर आई। राजा परीक्षित उसी ओर चल पड़े। राजा परीक्षित ने जोर-जोर से आवाज लगाई लेकिन उस कुटिया से कोई बाहर नहीं निकला। तभी राजा परीक्षित ने देखा कि कोई संत तपस्या कर रहे हैं। राजा परीक्षित ने बार-बार ऊंचे स्वर में बोलना शुरू किया कि उन्हें प्यास लगी है कृपया पानी देकर उनकी प्यास बुझाए। लेकिन साधु बहुत ही गहरी तपस्या में थे इसलिए उनका ध्यान नहीं टूटा। इतना सब देख राजा परीक्षित को बहुत तेज गुस्सा आया। तभी उन्होंने देखा कि नीचे जमीन पर एक मरा हुआ सांप पड़ा है।
राजा ने उस सांप अपने तलवार से उठाया और ऋषि के गले में डाल कर वहां से निकल गए। उन ऋषि को पता भी नहीं चला कि उनके गले में मरा हुआ सांप है और वह तपस्या में ही लीन रहे। तभी उन ऋषि का पुत्र वहां आता है और देखता है कि उसके पिता के गले में एक मरा हुआ सांप है। ऋषि के पुत्र ने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा और राजा को ये श्राप दिया की अगले 30 दिनों के अंदर सापों के राजा तक्षक के काटने से तुम्हारी मौत हो जाएगी।
हालांकि राजा ने ये सब जान बूझकर नहीं किया था ये सब तो उन्होंने कलयुग के प्रभाव के कारण किया था। जब इस बात का पता राजा को चला तक कलयुग के प्रभाव के कारण राजा को घमंड हो गया था। वो उस संत के पास माफी मांगने नहीं गए। राजा ने एक चिकने खंभे के ऊपर एक महल बनवाया और अगले 30 दिनों तक वही रहना शुरू कर दिया। जिस खंभे के ऊपर वो महल बना था वो खंभा इतना चिकना था की उस पर कोई कीड़ा भी नहीं चढ़ सकता था। राजा ने उस महल मे 29 दिन बिता दिया और उनको कुछ भी नहीं हुआ। अब राजा का अहंकार अपनी चरम पर था वो बार बार ऋषि का मजाक उड़ा रहे थे।
जब 30 वे दिन राजा खान खा रहे थे तभी उस खाने में एक कीड़ा निकला। राजा ने उस कीड़े को अपने हाथों में लिया जोर जोर से हसने लगे और बोलने लगे की ये छोटा सा कीड़ा मुझे कैसे मार सकता मैं अभी इसे अपने पैरों से कुचल देता हूं। तभी अचानक उस कीड़े ने एक विशाल साप का रूप ले लिया। वास्तव में में ये सापों के राजा तक्षक थे जो कीड़े का रूप ले के आये थे। उनके काटने कारण राजा की मौत हो गई। वास्तव में ये सब कलयुग के प्रभाव के कारण हुआ। कलयुग ने राजा की बुद्धि भ्रस्ट कर दिया जिसके कारण ये सब हुआ। इसके बाद उस सांप का क्या हुआ ये अगली post में मालूम चलेगा।
बहुत ही सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंThanks for your feedback, please share link with your friends.
हटाएंGood job Tiwari ji
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंThanks for your feedback.
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