परीक्षित को काटने के बाद क्या हुआ सभी सांपों का? : What happened to all the snakes after biting Parikshit?
पिछले post में मैंने आप सभी को बताया था की कलयुग का सबसे पहला शिकार कौन बना था और किस तरह से तक्षक नाग के काटने से उनकी मृत्यु हो गई। राजा परीक्षित ने अपनी मृत्यु को रोकने का पुरा प्रयास किया लेकिन कहते हैं ना की जब मृत्यु का समय हो जाता है तो कोई कितना भी प्रयास कर ले वो तो आ कर ही रहती है। वास्तव में राजा परीक्षित की मृत्यु का कारण कलयुग के प्रभाव से जन्मा अहंकार था। इस लिए सभी को अहंकार वाली इस बीमारी से बचना चाहिए। आप सभी को भी ज्ञानी बनने का प्रयास करना चाहिए ना की अहंकारी। अपने मन से अहंकार को मिटाने के लिए सभी के प्रति आदर और सम्मान के भावना रखें चाहे वो जीव कैसा भी हो।
राजा परीक्षित की मृत्यु के बाद उनके बेटे जन्मेजय ने उनका अंतिम संस्कार पूरे विधी विधान से कर दिया. जब जन्मेजय को इस बात का पता चला की किस तरह से परीक्षित ने उस साधू के गले में मरा हुआ सांप डाला और किस तरह से ऋषि के बेटे ने परीक्षित को ये श्राप दिया की 30 दिनों के भीतर सांप के काटने से उनकी मृत्यु हो जाएगी. सारी बात जानने के बाद जन्मेजय को बहुत दुख भी और बहुत क्रोध भी आया. वो किसी भी तरह से अपने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेना चाहते थे. जन्मेजय भी बहुत बलशाली और पराक्रमी थे. प्रतिशोध लेने के लिए जब उन्हें कोई उपाय नहीं मिला तो उन्होंने ऋषियों की सहायता लिया और उनसे उपाय पूछा.
ऋषियों ने उन्हें बताया की सांपों से युध्द करके जीतना असंभव है, वो बहुत ही विषैले होते है कुछ ही समय मे पूरी सेना का नाश कर देंगे. ऋषियों ने जन्मेजय से कहा की उन्हें एक ऐसा यज्ञ करना चाहिए जिसमे सभी सांप विवश होकर खुद ही अपनी आहुति दे दे. ऋषियों का यह सुझाव जन्मेजय को बहुत अच्छा लग. वो तुरंत ही यज्ञ की तैयरी मे लग गए. यज्ञ की सभी तैयारियां होने के बाद यज्ञ के समस्त ऋषियों को बुलाया गया और यज्ञ शुरू किया गया. यज्ञ और मंत्रों के उच्चारण के कारण सभी सांप सम्मोहित होने लगे और हवन कुंड की ओर चल पड़े.
जैसे जैसे हवन की प्रक्रिया आगे बढी वैसे वैसे सभी सांप एक एक कर स्वयं ही हवन कुंड में कूद कर अपनी आहुति देने लगें. जन्मेजय इस संसार से सभी सांपों का नाश कर देना चाहते थे. धीरे धीरे इस संसार के सभी सांपों ने अपनी आहुति दे दी थी और अब इस संसार में वासुकी नाग के अलावा कोई और सांप जीवित नहीं बचा था. वासुकी नाग वही हैं जो भगवान शिव के गले में रहते है. वासुकी नाग ने अपने प्राण बचाने के लिए जाकर इन्द्र के सिंहासन के पाए से लिपट कर बैठ गए. हवन और मंत्रों का प्रभाव इतना अधिक था की इन्द्र का सिंहासन ही वहा से उखड़ कर हवन कुंड की ओर चल पड़ा.
इन्द्र के सिंहासन के उखड़ते ही सारे संसार में हाहाकार मच गया. तब सभी देवता मिल कर जन्मेजय के हवन स्थल पर गए और उनसे हवन को रोकने का निवेदन किया. सभी देवताओं के निवेदन को जन्मेजय ठुकरा नहीं पाए और हवन रोक दिया. हवन रुकने के बाद इन्द्र का सिंहासन फिर से अपने स्थान पर चला गया. हवन पूरी तरह से रुक जाने के बाद वासुकी नाग वहां प्रकट हुए और जन्मेजय से बोले की आप के हवन रोकने के कारण ही मेरे प्राण बचे है इस लिए मैं सदा आप का आभारी रहूँगा. इसके साथ ही वासुकी नाग ने जन्मेजय को यह वरदान दिया की आज से इस संसार आप को और आप की प्रजा को किसी भी सांप से कोई हानि नहीं होगी, इतना ही नहीं अगर किसी के भी पीछे सांप पड़ा हो और वो जन्मेजय का नाम ले लेगा तो सांप वही से वापस लौट जाएगा.
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बहुत ही सुन्दर वर्णन..खास कर जन्मेजय के बारे में
जवाब देंहटाएंThank you for your feedback.
हटाएंNice narration.
जवाब देंहटाएंThank you for your feedback.
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